भगवद गीता के ये 10 उपदेश आपकी जिंदगी बदल देंगे, Geeta Updesh in Hindi, भगवद गीता उपदेश इन हिंदी में
नमस्कार मेरे प्यारे भाईयो और बहनों, आप सभी का नॉलेज ग्रो स्पिरिचुअल ब्लॉग पर स्वागत है। दोस्तो आज के इस आर्टिकल जरिए में आपके साथ भगवद गीता के 10 उपदेश हिंदी में शेयर करने वाला हू, जो आपके जीवन को पूरी तरह से बदल देंगे।
दोस्तो यह आर्टिकल आप सभी के लिए बहुत ही स्पेशल और जीवन को बदल देने वाला साबित होने वाला है। इसीलिए इस भगवद गीता उपदेश इन हिंदी आर्टिकल को अंत तक ध्यान से जरूर पढ़िए। तो बिना समय को गवाए चलिए आर्टिकल की शुरुआत करते है।
Top 10 Life Changing Geeta Updesh in Hindi | गीता उपदेश इन हिंदी में
दोस्तों अगर आप एक marathi रीडर है, तो यह आर्टिकल मराठी भाषा में भी पाठकों को पढ़ने के लिए उपलब्ध है। इसलिए अगर आप marathi में गीता उपदेश आर्टिकल को पढना चाहते हो, तो उसकी लिंक हमने निचे दी हुई है।
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Bhagwat Geeta Updesh in Hindi – 1
“इस श्रुष्टि में जो जन्म लेता है, वो निश्चित रूप से मृत्यु के अधीन हो जाता है”
दोस्तो यहाँ भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की इस मृत्यु लोक का हर एक प्राणी चाहे हो मनुष्य हो या पशु पक्षी हो, या फिर पेड़ पौधा हो, हर सांस लेने वाला प्राणी अपने जन्म के साथ मृत्यु को भी लेकर आता है। हर प्राणी को एक ना एक दिन निश्चित क्षण पर मरना अर्थात अपने शरीर को त्यागना ही पड़ता है।
Bhagwat Gita Updesh in Hindi – 2
“मनुष्य को सिर्फ कर्म करने का अधिकार है, फल की इच्छा ना करें।”
दोस्तो यहाँ भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की मनुष्य को चाहिए की फल की इच्छा त्यागकर कर्म को अपना धर्म समझकर करे। क्योंकि जो भी मनुष्य फल प्राप्ति की इच्छा करता है, उसका मन फल के बारे में सोचकर, अपने कर्म और कर्तव्य से विचलित हो जाता है। और उस इंसान को वो फल प्राप्त नही होता है, जिसकी उसने इच्छा की हुई थी।
इसीलिए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की मनुष्य सिर्फ कर्म कर सकता है, फल कदापि मनुष्य के अधीन नही है। जो लोग फल की इच्छा से ही कर्म करते हैं, वे लोग सुख दुख आदि के चक्र में फंस जाते हैं और उनकी मना शांति नष्ट हो जाती है।
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की मनुष्य अपने फल की इच्छा को त्यागकर कर्म को अपना धर्म समझकर करे, तो उसको फल अवश्य मिल जायेगा, परंतु उस फल को वो व्यक्ति विधान की इच्छा समझकर स्वीकार कर ले। और ज्ञानी व्यक्ति भी इसी योग को अपनाकर कर्म योगी बन जाते हैं।
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Geeta Updesh on Death in Hindi – 3
“इस विश्व में केवल शरीर मरते हैं, लेकिन आत्मा अविनाशी है। शरीर के मरने पर भी आत्मा नही मरती हैं।”
दोस्तो यहाँ भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की आत्मा न कभी जन्म लेती है और ना ही कभी मरती है। वो अजन्म, नित्य, सनातन और पुरातन है। जो शरीर के मारे जाने के बाद भी नही मरती है। जो सचमुच ज्ञानी होते हैं, वो ना उनका शोक करते हैं, जो मर गए हैं और ना ही उनका शोक करते हैं जो अभी जिंदा है।
क्योंकि वो जानते हैं की जो मर गया है, वो फिर से जन्म लेगा। और जो अभी जीवित है, वो अवश्य ही मर जायेगा। मरने वाला फिर से जन्म लेगा, क्योंकि केवल शरीर का नाश होता है, शरीर के अंदर जो आत्मा है, वो कभी भी नही मरता है। क्यूँकी आत्मा को ना कोई शस्त्र काट सकता है और ना ही उसे अग्नि जला सकती है। ना ही जल गला सकता है और ना ही इसे वायु सुखा सकती है।
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Krishna Arjun Geeta Updesh in Hindi – 4
अपने मन को नियंत्रित करो।
दोस्तो यहाँ भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की मनुष्य के शरीर का एक अदृश्य अंग है मन, जो कभी दिखाई नही देता परंतु वही इस शरीर का सबसे शक्तिशाली हिस्सा है। मनुष्य को में के घमंड की मदिरा पिलाकर मदहोश करने वाला पाखंडी केवल ये मन ही है।
उसके हाथों में मोहमाया का जाल है, जिसे वो मनुष्य की कामनाओं पर डालता रहता है और उसे अपने वश में करता रहता है। ये मन शरीर से भी मोह करता रहता है और अपनी खुशियों से भी और अपने दुखों से भी मोह करता रहता है।
खुशियों में खुशियों भरी गीत गाता है और दुख में दुख भरे गीत गुनगुनाता है। अपने दुखों में दूसरो को शामिल करके उसे खुशी मिलती है। किसी भी मनुष्य को उसका मन जीवन के अंत तक अपने जाल से निकलने नही देता। अपने रस्सी में बांधकर उसे तरह तरह के नाच नचवाता रहता है।
ऐसा तब तक होता रहता है, जब तक हम अपने आपको मन के आधीन रहने देंगे, तब तक हमारा मन हमे नाच नचाता रहेगा। मनुष्य का मन मनुष्य को इतनी पुरसत भी नही देता की वो अपने अंतर में झाककर अपनी आत्मा को पहचाने और आत्मा के अंदर जिस परमात्मा का प्रकाश है, उस परमात्मा का साक्षात्कार करें।
किसी भी जीवित प्राणी के लिए आवश्यक है की “प्राणी अपने मन को काबू में करके, अपने अंतर में झाककर अपनी आत्मा को देखे। तब उस आत्मा के अंदर उसे परमात्मा का प्रकाश स्पष्ट दिखाई देगा। और उसी को ही परमात्मा का साक्षात्कार कहते हैं।
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Bhagwat Geeta Krishna Updesh in Hindi – 5
हमारा शरीर और मन कैसे काम करता है।
दोस्तो यहाँ भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की मनुष्य का शरीर एक रथ के भांति है. जैसे आंख, कान, नाक, जीभ और त्वचा आदि… इन इंद्रियो घोड़ों को जो सारथी चलाता है, वो सारथी ही हमारा मन है। और उस रथ में बैठा हुआ स्वामी वही हमारी आत्मा है।
मनुष्य की इंद्रियां विषयो की ओर आकर्षित होती रहती है और ये सब तभी तक ही हो सकता है, जब तक जीवात्मा अपने मन को काबू में ना लाए। जब तुम स्वयम मन के आधीन ना रेहकर, अपने मन को अपने आधीन कर लोगे तो वही मन एक अच्छे सारथी की तरह तुम्हारे शरीर रूपी रथ को सीधे प्रभु की चरणो में ले जायेगा।
यदि मन तुम्हारा स्वामी है और तुम उसके आधीन हो, तो वो तुम्हे माया के बंधन में जखड़ता रहेगा। और जब तुम अपने मन पर काबू पालोगे, और उसके स्वामी हो जाओगे, तो वही मन तुम्हे मोक्ष के द्वार तक ले जायेगा।
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Geeta Updesh For Students in Hindi – 6
भगवद गीता गीता के अनुसार खुशी के 3 प्रकार
दोस्तो भगवद गीता के अनुसार इस दुनिया में 3 प्रकार की खुशी होती है 👇👇👇
तामसिक खुशी:
दोस्तो पहली प्रकार की तामसिक खुशी हमे ज्यादा सोने से या ज्यादा आलसी होने के वजह से मिलती है, यानी की आराम करने वाली खुशी।
राजसिक खुशी:
दोस्तो राजसिक खुशी हमे जो किसी material Goal को अचिव करने के बाद मिलती है, जैसे की “पैसे कमाना, गाड़ी खरीदना, दारू पीना” आदि चीजे करने से जो हमे खुशी मिलती है, वो राजसिक खुशी कहलाती है।”
सात्विक खुशी:
दोस्तो ये जो तीसरी प्रकार की खुशी होती है ना, उसे सात्विक खुशी कहते हैं। भगवद गीता ये कहती हैं की तामसिक और राजसिक ये दोनो खुशियां अस्थाई होती है, पर सात्विक खुशी है ना वो पहले हमे जेहर की तरह लगती है, लेकिन बाद में वो हमें शहद की तरह लगने लगती है।
दोस्तो लॉन्ग टर्म और परमनेंट खुशी हमे अनुशासन और आध्यात्मिक स्टडीज करने से ही मिलती है, जिसे सात्विक खुशी कहते हैं। दोस्तो आप ज्यादा तर किस तरह की खुशी में होते हैं? यह हमे नीचे कमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके जरूर बताएं।
भगवद गीता उपदेश इन हिंदी अर्थ सहित – 7
दोस्तो यहाँ भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की इस संसार में केवल दो ही वस्तु है, एक शरीर और दूसरा उस शरीर में रहने वाला शरीरी। इस शरीर में रहने वाला जो आत्मा रूपी शरीरी है, वो कभी भी नही मरता है, और जो शरीर है, वो सदा रहता नही है।
आत्मा एक शरीर छोड़ता है और दूसरा शरीर धारण कर लेता है। बिलकुल वैसे ही जैसे मनुष्य अपने पुराने कपड़े उतारकर नए कपड़े धारण कर लेता है। आत्मा नित्य है, इसीलिए वो नही बदलती परंतु शरीर नाशवान है, इसीलिए एक ही आत्मा के कई शरीर बदलते हैं। इसीलिए हर जन्म में हमारी आत्मा नए नए शरीर धारण कर लेती है।
Shrimad Bhagwat Gita Updesh in Hindi – 8
प्रारब्ध केवल मनुष्य का बनता है।
दोस्तो यहाँ भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की “अगर कोई साप किसी मनुष्य को अकारण काटता है, तो उस साप को उसका पाप नही लगेगा, और ठीक उसी तरह शेर दूसरे जानवर की हत्या करता है, तो उसका उसे पाप नही लगेगा। या बकरी का उदाहरण लीजिए “बकरी किसी की हत्या नही करती है, और सिर्फ घास खाती है, तो इस कारण वो पुण्य की भागी नहीं बनती। पाप पुण्य का लेखा जोखा अर्थात प्रारब्ध केवल मनुष्य का बनता है।
दोस्तो इसका अर्थ यह है की अगर कोई पशु किसी की अकारण हत्या कर देता है, तो उसका उसे पाप नही लगेगा, लेकिन कोई मनुष्य अगर किसी भी जीवित प्राणी की अकारण हत्या कर देता है, तो उसे उसका पाप लगेगा। क्योंकि 👇👇👇
“इस पृथ्वी लोक पर और समस्त प्राणियों में जो विवेकशील है, वो अच्छे और बुरे की पहचान रख सकता है, और वो मनुष्य छोड़कर कोई और प्राणी ऐसा नहीं कर सकता।” इसीलिए जब मनुष्य अपने पाप और पुण्य जब भोग लेता है, तो उसे फिर से मनुष्य की यो*नी में भेज दिया जाता है।
गीता के उपदेश इन हिंदी – 9
एक ही कर्म किसी के लिए पाप बन जाता है और दूसरे के लिए पुण्य बन जाता है।
दोस्तो एक मनुष्य किसी कमजोर और बूढ़े व्यक्ति का धन लूटने के लिए उसकी हत्या कर देता है, तो उस व्यक्ति को निश्चित ही उसके द्वारा किए गए कर्म का पाप लगता है। और यदि दुष्ट मनुष्य किसी स्त्री के साथ जबरदस्ती बलात्कार करने की कोशिश कर रहा है, तो उस स्त्री की रक्षा करने के लिए अगर कोई व्यक्ति उस दृष्ट मनुष्य की हत्या कर देता है, तो उसका उसे पाप नही लगता है, बल्कि पुण्य लगता है।
दोस्तो कर्म तो वही रहा “किसी की हत्या करना” परंतु उस कर्म के पीछे की भावना क्या है और मारने वाले की नियत क्या है? इसी के फर्क से ही एक ही कर्म किसी के लिए पाप हो सकता है और दूसरे के लिए पुण्य हो सकता है। जिस भावना और नियत से मनुष्य कर्म करता है, उस नियत के कारण एक ही कर्म किसी के लिए पाप बन जाता है और किसी के लिए पुण्य बन जाता है।
कर्म के इस ज्ञान के द्वारा ही मनुष्य को कर्म विकर्म और अकर्म की पहचान होती है। दोस्तो इसका अर्थ यह है की “मनुष्य जब निष्काम भावना से कर्म करता है, तो उस कर्म का फल उसे नही भोगना पड़ता है। इसीलिए वो अकर्म हो जाता है। कर्म उसे कहते हैं जिसे सकाम भाव से और फल की इच्छा से किया जाता है, उसका फल मनुष्य को उसके कर्म के अनुसार अवश्य मिलता रहता है।
“अच्छे कर्म का फल अच्छा मिलता है और बुरे कर्म का बुरा फल मिलता है” और जो असत्य, कपट, हिंसा आदि अनुचित और निश्चिद कर्म को विकर्म कहते हैं।
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गीता का उपदेश इन हिंदी -10
हर मनुष्य का प्रथम धर्म क्या है और अपने धर्म का विधान मनुष्य खुद बनाता है।
दोस्तो इसका अर्थ समझाते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं की धर्म का जो विधान है, अगर उसे किसी दूसरे व्यक्ति ने बनाया हो तो वो तुम्हारा धर्म नही हो सकता है। तुम्हारा धर्म वही है, जिसे तुमने स्वयम बनाया हो, जिसे तुम्हारी आत्मा ने स्वीकार किया हो। धर्म एक व्यक्तिगत चीज है, जिसका फैसला व्यक्ति को खुद लेना पड़ता है।
दोस्तो में आपको एक उदाहरण देकर समझाता हूं।
दोस्तो अगर किसी के गाव पर डाकू हमला करके उस गांव की लड़कियों का अपहरण कर रहे हो और उसी समय किसी का पिता मृत्युशैया पर पडा अंतिम सांस ले रहा हो और अपने पुत्र से बार बार पानी की एक एक घुट मांग रहा हो, तो उस समय उस व्यक्ति का यानी की उस पुत्र का क्या धर्म होना चाहिए?
वो मरते हुए अपने पिता के कंठ में अंतिम समय गंगा जल की बूंद बूंद टपकाता हुआ अपने पुत्र धर्म का पालन करें या फिर उसके गांव की लड़कियों पर जो संकट आ गया है, उनकी रक्षा के लिए अपने हाथ में तलवार उठाते हुए उन डाकुओ का मुकाबला करें? अवश्य पड़े तो अपनी जान भी देकर अपने गांव की इज्जत बचाएं।
दोस्तो इसका निर्णय कोई दूसरा व्यक्ति कैसे कर सकता है! इसको धर्म का दौराहा या धर्म संकट भी कहते हैं। ऐसी स्थिति में वो व्यक्ति क्या करें? उसका फैसला कोई और व्यक्ति नही कर सकता बल्कि ये निर्णय उसे खुद ही लेना पड़ता है की उस समय उसका प्रथम धर्म क्या है? उस समय उसकी अंतरात्मा जो आवाज दे वही उसका प्रथम धर्म है।
इसीलिए दोस्तो हर व्यक्ति का धर्म व्यक्तिगत होता है और मनुष्य अपने धर्म का विधान मनुष्य खुद बनाता है।
दोस्तों यह थे वो Top 10 Bhagwat Geeta ke Updesh in Hindi में, आप सभी को यह 10 उपदेश कैसे लगे? यह हमें नीचे कमेंट बॉक्स में कॉमेंट करके हमे जरूर बताएं। अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया होंगा, तो इस आर्टिकल को अपने दोस्तो के साथ अवश्य शेयर कीजिए, ताकि अन्य लोगो को भी श्री कृष्ण गीता उपदेश इन हिंदी में पढ़ने को मिल सकें।
Life Changing Bhagwat Geeta Quotes in Hindi
जिस मनुष्य में हारने की चिंताऐ कम और जीतने की ख्वाहिशें ज्यादा होती हैं, वह मनुष्य मन से बहुत शक्तिशाली होता है।
जीवन में सबकुछ हासिल कर लीजिए या गवां दीजिए मगर अपने स्वार्थ के लिए किसी का इस्तेमाल मत कीजिए।
Geeta Updesh in Hindi Quotes
जिस तरह थोड़ी सी औषधि भयंकर रोगों को शांत कर देती है, ठीक उसी तरह ईश्वर की थोड़ी सी भक्ति बहुत से कष्ट और दुखों का नाश कर देती है।
कभी कभी अपनी लाइफ में आगे बढ़ने के लिए उन चीजों और व्यक्तियों को भी त्यागना पड़ता है, जो कभी तुम्हारी हृदय की गहराइयों में विलीन थे !
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Conclusion of Geeta Updesh in Hindi:
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दोस्तों आज के इस Geeta Ke Updesh in Hindi आर्टिकल में सिर्फ इतना ही, दोस्तो हम आपसे फिर मिलेंगे ऐसे ही एक life चेंजिंग आर्टिकल के साथ, तब तक के लिए आप जहा भी रहिए खुश रहिए और खुशियां बांटते रहिए।
आपका बहुमूल्य समय देने केलिए दिल से धन्यवाद 🙏🙏🙏
FAQ of Geeta Updesh In Hindi:
गीता का मुख्य उपदेश क्या है?
गीता का मुख्य उपदेश यह है की इस विश्व में केवल शरीर मरते हैं, लेकिन आत्मा अविनाशी है। शरीर के मरने पर भी आत्मा नही मरती हैं।
गीता के अनुसार मनुष्य को क्या करना चाहिए?
गीता के अनुसार मनुष्य को सारे धर्मो को त्यागकर एक मात्र भगवान श्री कृष्ण की शरण में जाना चाहिए। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है की छोडो घर द्वार और चलो हरीद्वार. बल्कि घर में अपने परिवार के साथ में रहकर भी भक्ति की जा सकती है।
गीता का सबसे महत्वपूर्ण उपदेश क्या है?
गीता का सबसे महत्वपूर्ण उपदेश यह है की हम शरीर नहीं बल्कि हम एक आत्मा है। शरीर के मरने पर भी आत्मा नहीं मरती, क्यूँकी आत्मा अजन्म, नित्य, सनातन और पुरातन है।
Life changing quotes by bagwat gita..realy it was very great for us.