संत मीराबाई का जीवन परिचय, Sant Mirabai Biography in Hindi, Sant Mirabai Story in Hindi
नमस्कार मेरे प्यारे भाईयो और बहनों, आप सभी का हमारे नॉलेज ग्रो स्पिरिचुअल ब्लॉग पर स्वागत है। दोस्तो आज की यह ब्लॉग पोस्ट आप सभी के लिए बहुत ही स्पैशल और दिल को छू लेने वाली साबित होने वाली है।
क्योंकि दोस्तो आज के इस आर्टिकल के ज़रिए में आपके साथ संत मीराबाई की जीवनी इन हिंदी में शेयर करने वाला हु, जिसे पढ़कर आपकी आंखों से आसू बहने लगेंगे। दोस्तों इसलिए “संत मीराबाई का जीवन परिचय” आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़िए। तो बिना समय को गंवाए चलिए आर्टिकल कि शुरुआत करते हैं।
संत मीराबाई का जीवन परिचय | Sant Mirabai Biography in Hindi
दोस्तो ये जो संत मीराबाई जी है ना वो बहुत बड़ी कृष्ण भक्त थी। और जब वो इस कलयुग में आयी तो इन्होंने गिरधर गोपाल जी (श्री कृष्ण) की पूजा की। तो दोस्तो ये मीरा बाई कौन थी और क्यों इन्हे कलयुग में मीराबाई का जन्म लेकर आना पड़ा? ये सब आपको इस दिल को छू लेने वाली कहानी के ज़रिए जानने को मिल जायेगा।
दोस्तो मीराबाई की कहानी की शुरुआत करने से पहले आपको उनके बारे में शॉर्ट इंट्रोडक्शन देते हैं। यानी की मीराबाई कौन थी और मीरा बाई का जन्म कब और कहाँ हुआ था? ये सब आपको शॉर्ट में बताते है। फिर उसके बाद मीरा बाई की दिल को छू लेने वाली कहानी आपके साथ शेयर करेंगे।
मीरा बाई का जन्म कब और कहाँ हुआ?
दोस्तो मीरा बाई का जन्म ईसवी सन 1498 में पाली के कुड़की गांव में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर में हुआ था। मीराबाई जी को बचपन से ही कृष्णभक्ति में बहुत रुचि थीं। और इसके कारण वो भगवान श्री कृष्ण को ही अपना सबकुछ मानती थी।
आगे जाकर वो बहुत बड़ी कृष्ण भक्त बनी और उसने भगवान श्री कृष्ण जी की इतनी भक्ति की – इतनी भक्ति की की भगवान श्री कृष्ण जी को अपने प्रिय भक्त को अपने धाम में ले जाने के लिए आना ही पड़ा।
दोस्तों कहा जाता है की मीरा बाई जी ने जीवनभर भगवान श्री कृष्ण का इतना जाप किया और स्मरण किया की जीवन के अंत में उनको साक्षात भगवान श्री कृष्ण के दर्शन हुए और फीर भगवान श्री कृष्ण ने मीराबाई को अपने मुख मंडल में समा लिया। इसी के कारण इस धरती पर मीराबाई जी की कही पर भी समाधि नही मिलती।
दोस्तो वो कहते हैं ना कि प्रल्हाद महाराज जैसा विश्वास हो, शबरी जैसी आस हो, दोपद्री जैसी पुकार हो और मीराबाई जैसा इंतजार हो तो भगवान को अपने भक्त से मिलने के लिए आना ही पड़ता है। ठीक ऐसा ही मीरा बाई के साथ हुआ।
दोस्तों अब जानते है मीरा बाई की दिल को छू लेने वाली कहानी जो आपको रुलाकर रख देगी। दोस्तो इस कहानी को अंत तक पढ़ना बहुत जरूरी है, इसलिए कहानी को अंत तक जरूर पढ़िए। तो फिर चलिए मीरा बाई की कहानी की शुरुआत करते हैं।
मीराबाई की कहानी – Sant Mirabai Story in Hindi
दोस्तो कलयुग में मीराबाई का जो जन्म हुआ था ना वो मीरा बाई का दूसरा जन्म था। इससे पहले भी उनका एक और जन्म हुआ था, जब भगवान श्री कृष्ण द्वापरयुग में वृदांवन में लीला कर रहे थे, तब मीराबाई जी व्रज मंडल की ही एक बेटी थी और तब उनका नाम माधवी था।
तब माधवी जी का सय्योग से विवाह वृदांवन में हुआ था। और जिस लड़के से उनका विवाह हुआ था वो लड़का भगवान श्री कृष्ण के ग्वाल वालो में से एक था और उसका नाम “सुंदर” था। दोस्तो भगवान श्री कृष्ण के कई सारे सखा थे और “सुंदर” भी उनमें से एक था।
इस सुंदर नाम के लड़के से माधवी का विवाह हुआ था। विवाह तो हो गया था लेकिन बिदाई तो नही हुई थी, क्योंकि पहले के जमाने में पहले शादी हो जाती थी और बाद में बिदाई हो जाती थी। जब माधवी की बिदाई होने लगी तब माधवी के माँ ने उसे ये समझाया की …
बेटी सुन की तेरा वृदांवन में विवाह हो गया है और वहा पर कृष्ण कन्हया नाम का एक लड़का रहता है। और तू ये देख की किसी भी प्रकार से उसे देखना भी मत। क्योंकि यदि तुमने उसे देख लिया तो माधवी की मां ने यह सुना था की कृष्ण कन्हया को जो भी देख लेता है, तो वो कन्हया में खो जाता है यानी की उनकी की ओर आकर्षित हो जाता है।
इसलिए माधवी की मां को यह डर लग रहा था की कही मेरी बेटी माधवी कृष्ण कन्हया पर आकर्षित ना हो जाए। और यदि वो कृष्ण कन्हया पर आकर्षित हो जाए तो उसका पतिव्रता का धर्म नष्ट हो जायेगा। इसलिए माधवी की मां ने माधवी को ये उपदेश दिया की तू किसी भी प्रकार से उस कृष्ण कन्हया को देखना भी मत।
लेकीन माधवी की मां को यह पता नही था की श्री कृष्ण एक भगवान है। वो कृष्ण को सिर्फ एक साधारण पुरुष मानती थी। और ये जानती थी कि वो बहुत सुंदर है, जो भी उनकी तरफ देखता है, वो मोहित हो जाता है। और इसलिए उन्हें यह लगा की कही मेरी बेटी भी मोहित न हो जाए।
और नारियों के लिए तो यह स्वभाय मानिय हैं कि वो अपने पति को छोड़कर किसी अन्य पुरुष को न देखे, यही तो हमे सिखाया जाता है और ये बात भी सही है। माधवी के मां के द्वारा इतना सब समझाने के बाद माधवी समझ गई।
बिदाई होने के बाद माधवी जब वृदावन में रहने के लिए वृदावन गांव के समीप आ ही रही थी। तभी उसके पति सुंदर ने उससे कहा की अरे वो सुनती हो देखना हमारा कन्हया यही कही गय्या चरा रहा होगा और सुनलेगा की में आ गया हु तो अभी दौड़के आ जाएगा और कहेगा की भाभी जी का मुंह तो दिखाओ!!!
तभी सच्ची में वहा पर भगवान की गय्या नजर आई और भगवान सुंदर की ओर दौड़े दौड़े आए उससे पूछा कि अरे सुंदर तू आ गया दुल्हन लेके। सुंदर उस समय 16 साल का बालक था और भगवान श्री कृष्ण की उमर लगभग 7 से 8 साल की थी।
फिर सुंदर ने भी भगवान को गले लगाया और भगवान ने भी सुंदर को गले लगाया। उसके बाद भगवान ने सुंदर से कहा कि बहु ले आया, तो हमे भी भाभी जी के दर्शन करा दें। तो फिर सुंदर ने बोला की कान्हा में तुमको क्या दर्शन करावू, तेरी तो भाभी है इसलिए तू ही जाकर के देख लें।
तो भगवान डोली के पास गए और डोली का पर्दा हटा कर भाभी जी से कहा की भाभी वो भाभी अपना मुंह तो दिखाओ. चुकी माधवी की मां ने उससे ये कहा था की कृष्ण कन्हया नाम के पुरुष को देखना भी मत। तो इसलिए माधवी ने अपना पूरा मुंह ढक लिया और अपने हाथ पाव को भी बिलकुल ऐसे ढक लिया ताकि जरा सा भी शरीर न दिखाई दे।
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फिर भगवान ने कहा कि भाभी वो भाभी जरा अपना मुंह तो दिखा दो। बड़ी सुंदर और आकर्षक आवाज माधवी के कानो में चली गई। लेकिन माधवी ने कोई उत्तर न दिया और नाही अपना मुंह दिखाया। तो फिर भगवान समझ गए की कुछ तो गड़बड़ है…
फिर भगवान ने माधवी से कहा की अच्छा भाभी तो सुनो आज हम आपका मुंह देखने आए तो तुम हमे अपना मुंह नही दिखा रही हो, अब तुम सदाह हमारा मुख देखने के लिए तरसोगी। यह कहकर के भगवान वहा से वापस घर आ गए।
फिर उसके बाद माधवी अपने ससुराल मतलब वृदावन में आ गई और भगवान भी वहा पर ही थे, वही से आना जाना होता था। माधवी जब भी भगवान के आने का आहट सुनती तो माधवी अपना मुंह ढकती थी। जब भी सुंदर अपने कान्हा की बात करता था, तब माधवी उसे इग्नोर कर देती थी।
सुंदर को भी लगने लगा की मेरी पत्नी कैसी है, श्याम सुन्दर की बाते तो न करती है और न सुनती है। फिर एक दिन माधवी के सांस ने माधवी को यशोदा मैया के पास लेके गई और उनसे कहा की यशोदा मैया मेरी बहु आई है उसे आप आशीर्वाद दो।
माधवी भगवान के घर में बैठी ही थी, तभी वहा पर भगवान आ गए और भगवान ने कहा की मां कुछ खाने को दो बहुत बुख लगी है। यशोदा मैया ने कान्हा से कहा की लल्ला तू थोड़ा बैठ में तेरे लिए कुछ खाने के लिए लेकर आती हु। तभी भगवान ने यशोदा मैया से कहा की घर में जो बहु आई है वो किसकी बहु है?
यशोदा मैया ने कहा की बेटा वो सुंदर की पत्नी है, और ये सुनकर भगवान समझ गए की वो सुंदर कि पत्नी है, इसलिए वो वहा से भाग गए। क्योंकि भगवान ने माधवी से कहा था की एक दिन तू ही मेरा मुंह देखने के लिए तड़पे गी, लेकिन में नही देखूंगा।
ऐसे करते करते बहुत दिन बीत गए, फिर एक दिन हुआ ये की इंद्र ने मूसलधार पाणी बरसाया, उसके कारण पूरे गांव में पानी ही पानी हो गया। तब भगवान ने व्रजवासियों की रक्षा करने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी एक उंगली पर उठाया और सारे व्रजवासियों की रक्षा की।
और जब भगवान ने गोवर्धन पर्वत को उठाया तब सब लोग उस पर्वत के तलहटी पर आ गए और सबने वहा आकर शांति पाई। और जिस दिन भगवान ने गोवर्धन पर्वत को उठाया था ना उस श्याम माधवी को कुछ दिखाई नहीं पड़ा की किसने पर्वत उठाकर रखा हुआ है।
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उस पूरी रात माधवी ये सोचती रही कि हे भगवान पर्वत के नीचे पानी की एक बूंद भी नही है और इतना बड़ा पर्वत आखिर किसने उठाकर रखा हुआ होंगा? उसके बाद जब सुबह हुई और सूर्य भगवान की पहली किरण आई तो उसी क्षण माधवी ने अपनी नजर घुमाई की कौन है ये जिसने इतने बड़े पहाड़ को उठाकर रखा हुआ है।
फिर नजर घूमते घूमते ऊपर पड़ी तो माधवी को भगवान की उंगली नजर आई, माधवी ने उंगली को देखा तो उंगली बहुत सुंदर थी। उंगली के नीचे दृष्टि डाली तो माधवी को भगवान का सुंदर हाथ नजर आया।
हाथ के नीचे दृष्टि डाली तो माधवी को भगवान का सुंदर सुंदर चेहरा नजर आया। और माधवी ने पहली बार भगवान श्री कृष्ण को देखा, यानी उनकी सुंदर मुस्कान, सुंदर आंखे और सुंदर चेहरा और उनकी घुंघराले से बाल जो माधवी ने देखा तो माधवी ये समझ गई की,,,
एक उंगली से पहाड़ उठाने वाला और वो भी ७ दिनों तक उठाकर रखने वाला कोई साधारण पुरुष नही हो सकता, बल्कि वो भगवान ही हो सकता है। ये सब देखने और जानने के बाद तुरंत माधवी रोने लगी और मन ही मन कहने लगी की हे मां तूने मुझे कौन सा गंदा पाठ पढ़ा दिया।
उसी दिन मैने क्यों न भगवान देखा लिया जब वो मुझे भाभी भाभी कह कर बुला रह थे। मां आपके पाठ के कारण में इतने दिन तक भगवान की इतनी सुंदर और आकर्षक छवि से वंचित रह गई… और वो रोने लगी।
जब उसने भगवान के चरणों के ऊपर दृष्टि डाली तो माधवी उन चरणों में डूब गई और मन ही मन कहने लगी की हे श्याम सुन्दर मुझे इस कृत्य के लिए माफ कर देना और रोने लगी। और देखते देखते एक भगवान थे जो 7 दिनों तक ना कुछ खाए थे और ना कुछ पिए थे, सिर्फ खड़े होकर रहे।
और एक माधवी थी जिसने 7 दिनों तक सिर्फ अपने द्वारा किए गए अपराध का पश्चाताप करती रही की इतने दिनों तक मैने भगवान की इतनी सुंदर छवि को क्यों न देखी। क्योंकि ये तो स्वयं भगवान है और मेरी मां ने मुझे ये पाठ पढ़ाया की तू देखना भी मत।
और इस तरह से मुझे मेरे भगवान से वंचित रखा। कई लोग हमे ऐसे ही पाठ पढ़ाते हैं की भगवान (श्री कृष्ण) की शरण में मत जाओ, भगवान बिग्वान कुछ नही होता, बल्कि वो तुम्हारा सिर्फ अंधविश्वास है और कुछ नहीं।
जैसे माधवी की मां ने माधवी को जैसा उल्टा पाठ पढ़ाया, ठीक उसी तरह इस संसार में हमे भगवान से दूर करने के लिए पाठ पढ़ाए जाते है। जिससे हमे ये लगने लगता है कि भगवान से हमे दूर रहना चाहिए। फिर माधवी की भगवान की नजरो से नजरे मिल गई और माधवी उनसे आकर्षित हो गई।
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और मन ही मन उनको अपने दिल में बिठाकर दीन रात उन्ही का चिंतन करने लगी। चिंतन करते करते माधवी को कब 7 दिन बीत गए कुछ पता ही नही चला। 7 दिनों बाद इंद्र आए और उन्होंने भगवान से माफी मांगी, भगवान ने उन्हें माफ भी किया।
और फिर भगवान ने गोवर्धन पर्वत की स्थापना जहा की तहा कर दी। सब कुछ ठीक होने के बाद माधवी गोविंद (भगवान श्री कृष्ण) के चरणों में गिर पड़ी और कहने लगी की हे श्याम सुन्दर मुझे अपराधीन को माफ करदो। भगवान ने कुछ न कहा।
जब हम बोल रहे थे तब तुमने भी कुछ न कहा और अब तुम बोल रही हो, तो हम क्या कहे? लेकिन भगवान तो दयालु है इस कारण अंत में भगवान ने माधवी को उठाया और मुस्कुराते हुए कहा की अरे भाभी आप क्यों रो रही हो?
फिर माधवी ने कहा की प्रभु अब आप मुझे स्वीकार कर लीजिए और आप मुझे त्यागिए मत। फिर भगवान ने कहा की अपराध हो गया है ना तो कोई बात नही, क्योंकि अब तुमने स्वीकार कर लिया है। हमे कोई द्वेष नहीं है तुमसे।
जिस तरह हम ने सब को रखा है ठीक उसी तरह तुमको भी रखा है और सब पर मेरी कृपा होती है, ठीक उसी तरह तुम पर भी मेरी कृपा होगी। भगवान के द्वारा माफ करने के बाद भी माधवी खुद को माफ नही कर पाई।
फिर भगवान ने कहा की में तुमको माफ तो कर दूंगा, लेकिन अपनी किसी भी लीला में तुम्हे सम्मलित नही करूंगा। तो इसीलिए भगवान ने माधवी को अपने किसी भी रास लीला में या अन्य किसी लीला में सम्मलित नही किया।
दोस्तों अपने लीला में सम्मलित न करने के पीछे भी एक कारण था, क्या था वो कारण ये जानने के लिए इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ना बहुत जरूरी है। इसलिए आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़िए।
और वही जब भगवान व्रज मंडल छोड़कर के चले गए, तो ये माधवी धड़ाम से गिरती है। तब उसकी सखियां (गोपीया) उसको समझाती है की ‘हे माधवी कृष्ण केवल तुझे ही छोड़कर के थोड़ी ही नही चले गए है, बल्कि हम सभी को भी छोड़कर के चले गए है, इसलिए तू इतना क्यों रोती है?
अपने सखियों की ये बात सुनने के बाद माधवी अपनी सखियों से कहती है की “तुम लोगो ने तो भगवान को पकड़ लिया हुआ था, तो आपको छोड़कर के चले गए, लेकिन हमने तो उन्हें पकड़ा भी नही था और वो हमको छोड़कर के चले गए। इसलिए हमारा दुख तुम्हारे दुख से कई गुना बढ़ा है।
तुमने उन्हें पकड़ लिया था और अपने मन में बसा भी लिया था, लेकिन में तो सालो तक सिर्फ घूंघट ही करती फिरी रही, इसलिए हे विधाता आग लगे मेरे इस घूंघट को, जिस घूंघट के कारण मुझे मेरे कृष्ण भगवान से मुझे वंचित रखा।
आग लगे ऐसे मां के ज्ञान को जिस ज्ञान के वजह से मुझे मेरे भगवान से वंचित रखा गया। हे विधाता ऐसा ज्ञान किसी को भी मत देना, जो ज्ञान हमे हमारे भगवान से दूर कर दे। और ऐसा पर्दा न देना जो हमे भगवान से दूर करदे।
दोस्तो इस तरह से अपने पश्चाताप में तड़पते तड़पते माधवी ने अपने प्राण त्याग दिए। फिर यही माधवी कलयुग में मीराबाई बनने के पैदा होती है। अब वही मीरा अब लाज शर्म छोड़ छोड़ के सिर्फ कृष्ण भगवान के लिए नाचती रही।
क्योंकि अब वो जानती थी कि पिछले जन्म में खुप मैने लाज की घूंघट ओढ़ी, इसलिए अब कलयुग की मीरा बाई कोई घूंघट नही ओढ़ती। क्योंकि घूंघट ओढ़ने का परिणाम क्या होता है, वो देख चुकी थी।
मीराबाई जब पहिली बार वृंदावन में आई, तो उसे वहा पर वो सब बाते याद आ गई और पूरा का पूरा दृश्य उसके आखों के सामने आ गया। और मीरा सिर्फ भगवान श्री कृष्ण का चिंतन करती रहती हैं। सारी जिंदगी भगवान श्री कृष्ण का नाम जपती रही।
और संसार के लोगो को भी यही कहती रही की अरे भैया क्या तुम इस संसार के मायाजाल में उलझे पड़े हुए हो, भगवान की चरणों में क्यों नहीं चलते हो और उस आनंद में क्यों नहीं खो जाते, क्योंकि वही परम सत्य है।
मीरा बाई की मृत्यु कैसे हुई?
फिर उसके बाद मीराबाई द्वारिका चल पड़ी और अंत में भगवान का इतना स्मरण किया – इतना स्मरण किया और इतना नाम जपा की द्वारकादिश श्री कृष्ण ने मीराबाई से कहा की “पिछले जन्म में मैने तुम्हे स्वीकार नहीं किया, लेकिन इस जन्म में में तुम्हे स्वीकार करता हूं।
क्योंकि तुमने हमारी भक्ति करके अपने आपको पवित्र कर लिया है और फिर वही भगवान श्री कृष्ण अपना मुंह खोलते है और पूरी की पूरी मीरा भगवान के मुख मंडल में समा जाती है। दोस्तो इसी कारण इस धरती पर मीराबाई की कोई समाधि नही मिलती।
दोस्तो मीरा बनकर कृष्ण के लिए नाचना सबके बस की बात नही है। इसलिए धन्य है मीरा और धन्य है मीरा बाई का दिव्य चरित्र… दोस्तो ये थी मीरा बाई की कहानी, आप सभी को कैसी लगी? ये हमे नीचे कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरूर बताएं।
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दोस्तों आज के इस Sant Mirabai Biography in Hindi आर्टिकल में सिर्फ इतना ही, दोस्तो हम आपसे फिर मिलेंगे ऐसे ही एक दिल को छू लेने वाली कहानी के साथ, तब तक के लिए आप जहा भी रहिए खुश रहिए और खुशियां बांटते रहिए।
I Love you All ❤️❤️❤️
FAQ of Sant Mirabai Biography in Hindi:
मीराबाई का विवाह कब और किसके साथ हुआ?
मीराबाई का विवाह सन 1516 में मेवाड़ के महाराणा सांगा के बड़े पुत्र भोजराज सिंह के साथ हुआ था।
मीराबाई की शादी कब हुई थी
मीराबाई की शादी 1516 में थी। मीरा बाई की दिल को छू लेने वाली कहानी को पढने के लिए हमारे नॉलेज ग्रो ब्लॉग पर अवश्य विजिट करें।
मीराबाई का जन्म कब हुआ था
मीराबाई का जन्म ईसवी सन 1498 में पाली के कुड़की गांव में दूदा जी के चौथे पुत्र रतन सिंह के घर में हुआ था।
मीरा पर कृष्ण की कृपा कैसे हुई?
दोस्तों जीवनभर कृष्ण का नाम जप और उनका स्मरण करने के बाद मीरा पर भगवान श्री कृष्ण की कृपा हुई थी।
मीरा कृष्ण जी की पूजा क्यों करती थी?
मीरा कृष्ण जी की पूजा इसलिए करती थी क्यूँकी वो कृष्ण भगवान की बहुत बड़ी भक्त थी और उनको अपना सबकुछ मानती थी।
मीरा कृष्ण को क्या मानती है?
मीरा कृष्ण को अपना सबकुछ मानती थी और मीरा बाई की दिल को छू लेने वाली कहानी को पढने के लिए हमारे नॉलेज ग्रो ब्लॉग पर अवश्य विजिट करें।
मीरा बाई किसकी भक्त थी?
मीरा बाई भगवान श्री कृष्ण की भक्त थी। मीरा बाई की दिल को छू लेने वाली कहानी को पढने के लिए हमारे नॉलेज ग्रो ब्लॉग पर अवश्य विजिट करें।
मीरा और कृष्ण का क्या रिश्ता था?
मीरा और कृष्ण का भगवान और शुद्ध भक्त का रिश्ता था। मीरा बाई की दिल को छू लेने वाली कहानी को पढने के लिए हमारे नॉलेज ग्रो ब्लॉग पर अवश्य विजिट करें।
मीरा किसका अवतार थी?
मीरा अपने पिछले जन्म में कृष्ण की सखी माधवी का अवतार थी।
मीरा बाई की मृत्यु कैसे हुई
मीरा बाई ने जीवनभर भगवान का इतना स्मरण किया – इतना स्मरण किया की जीवन के अंत में उनको साक्षात भगवान श्री कृष्ण के दर्शन हुए और फीर भगवान श्री कृष्ण ने मीराबाई को अपने मुख मंडल में समा लिया।
Sir aapne mere life me jine ki iccha bahut jyada badha di hai 🙏🙏🙏
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