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Knowledge Grow > Geeta Gyan - गीता ज्ञान हिंदी में > Geeta Gyan: भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया अपने मन पर विजय पाने का रहस्य

Geeta Gyan: भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को बताया अपने मन पर विजय पाने का रहस्य

Last updated: 17/09/23
By Shridas Kadam
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12 Min Read
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Geeta Gyan: नमस्कार मेरे प्यारे भाइयों और बहनों, आप सभी का हमारे नॉलेज ग्रो स्पिरिचुअल ब्लॉग पर स्वागत है। दोस्तों इस आर्टिकल के जरिये में आज आपके साथ भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को अपने मन पर विजय प्राप्त करने हेतु जो Geeta ka Gyan दिया हुआ था, उसे ही में आज इस पोस्ट जरिये आपके साथ share करने वाला हु।

geeta gyan - geeta updesh

दोस्तों इस पोस्ट को अंत तक अवश्य पढ़िए, क्यूँकी इस पोस्ट के जरिये आपको बहुत कुछ नया जानने को और सिखने मिलने वाला है, जो आपके जीवन को बदल सकता है। दोस्तों इस आर्टिकल में हमने जो कुछ भी जानकारी आपके साथ share की हुई है, वो सब जानकारी हमने श्रीमद भगवद गीता से ली हुई है। तो बिना समय को गवाए चलिए आर्टिकल की शुरुआत करते है।

Geeta Saar: दोस्तों भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है की ” हे अर्जुन, जिस व्यक्ति ने अपने मन को जीत लिया हुआ है, उसके लिए उसका मन सर्वश्रेष्ट मित्र है और जो व्यक्ति ऐसा नहीं कर पाया है, उसके लिए उसका मन सबसे बड़ा शत्रु बना रहेगा। और भगवान श्री कृष्ण कहते है की जिसने अपने मन को जीत लिया हुआ है, उसने पहले ही परमात्मा को प्राप्त कर लिया हुआ है, क्यूँकी उसने शांति प्राप्त कर ली है।

और इस तरह के पुरुष के लिए सुख, दुःख और सर्दी, गर्मी एवं मान अपमान एक सा होता है। इसलिए हे अर्जुन, अगर तुम्हे अपने जीवन में सुख और शांति चाहिए, तो तुम्हे अपने मन को अपने वश में करना होंगा। दोस्तों भगवान श्री कृष्ण के मुख से यह सब बातें सुनने के बाद अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से कहता है की “हे मधुसुदन, यह कहना तो बहुत आसान है की तुम अपने मन पर काबू पालो और तुम अपने मन के स्वामी बन जाओ, परन्तु यही तो सबसे दुष्कर कार्य है?”

क्यूँकी मेरा मन तो वायु की तरह चंचल, हट्टी और अत्यंत बलवान है। और इस कारन मुझे अपने मन को अपने वश में करना बहती हुई हवा को अपने वश में करने से भी ज्यादा कठिन लग रहा है। इसलिए हे माधव, मुझे यह बताइए की आखिर यह मन क्या है और इस मन को अपने वश में कैसे कर सकता हु?

अर्जुन का यह प्रश्न सुनने के बाद भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते है की “हे अर्जुन, मानव का मन मानव के शरीर का एक अदृश्य अंग है, जो बाहर से कभी दिखाई तो नही देता है, किन्तु वही मानव के शरीर का सबसे शक्तिशाली अंग है। मानव को में के घमंड की मदिरा पिला पिलाकर मदहोश करने वाला पाखंडी केवल यह मन ही है।

उसकी हाथों में मोहमाया का जाल है, जिसे वो मनुष्य की कामनाओं पर टालता रहता है और उसे अपनी काबू में करता रहता है। मानव का मन शरीर से भी मोह करता है और अपनी खुशियों से और अपने दुखों से भी मोह करता रहता है। खुशियों में यह मन खुशियों भरी गीत गाता है और दुखो में यही मन दुख भरे गीत गुनगुनाता है। दुसरे लोगो को अपने दुखों में शामिल करके मनुष्य के मन को बहुत ज्यादा खुशी मिलती है।

किसी भी मानव को उसका मन जीवन के आखिर तक अपने जाल से इतनी आसानी से बाहर निकलने नही देता। और इसी तरह उसे अपने रस्सी में बांधकर उससे तरह तरह के नाच नचवाता रहता है। और यह सब तब तक चलता रहता है, जब तक की वो व्यक्ति अपने आपको अपने मन के अधीन रहने देता है, और जब वह व्यक्ति अपने मन के अधीन ना रहकर अपने मन को अपने अधीन करने लगता है, तब उसका मन उसकी काबू में आ जाता है।

मनुष्य का मन मनुष्य को जीवन के अंत तक इतनी पुरसत भी नही देता की वो अपने अंतर में झाककर अपनी अंतर-आत्मा को पहचाने और उस आत्मा के अंदर जिस परम-आत्मा (परमेश्वर) का प्रकाश है, उस परमेश्वर का साक्षात्कार कर सकें। इसलिए हे अर्जुन “किसी भी जीवित प्राणी के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है की वो प्राणी अपने मन को अपने काबू में कर के अपने अंतर में झाककर अपनी अंतर-आत्मा को देखे।

और जब वह व्यक्ति ऐसा करेगा तब उस व्यक्ति को अपनी अंतर आत्मा के अंदर परमात्मा का प्रकाश उसे स्पष्ट स्पष्ट दिखाई देने लगेगा। और इसी को ही परमात्मा का यानि की ईश्वर का साक्षात्कार कहते हैं। हे अर्जुन मानव का शरीर एक रथ की तरह ही है। जैसे आंख, नाक, कान, जीभ और त्वचा आदि. और इन सभी पाचों इंद्रियोरूपी घोड़ों को जो सारथी चलाता है, वो सारथी हमारी बुद्धि है और उस सारथी की हातो में जो लगाम है ना वह हमारा मन है।

और उस शरीर रूपी रथ में बैठा हुआ स्वामी ही मनुष्य की आत्मा है। मानव की इंद्रियां विषयो की ओर आकर्षित होती रहती है और यह सब तब तक ही होता रहता है, जब तक की वो मनुष्य अपने मन को अपने काबू में ना लाए। हे अर्जुन जब तुम स्वयम अपने मन के अधीन ना रेहकर, अपने मन को अपने अधीन कर लेते हो तो यही मन तुम्हे एक अच्छे सारथी की तरह तुम्हारे शरीर रूपी रथ को सीधे मुझ भगवान (श्री कृष्ण) की ओर ले जाता है।

तुम्हारा मन यदि तुम्हारा स्वामी है और तुम उसके अधीन होगे, तो तुम्हारा मन तुम्हे माया के बंधन में जखड़ता रहेगा। और जब तुम अपने मन पर काबू पा लोगे, और तुम उसके स्वामी हो जाओगे, तो यही मन तुम्हे मोक्ष के द्वार तक ले जायेगा।

गीता के उपदेश: श्री कृष्ण से जाने अपने मन को वश में कैसे करते है?

हे अर्जुन अब में तुम्हे मनुष्य के मन को काबू में कैसे लातें है? उसके बारे में बताता हु, जो तुम्हारे लिए और हर उस व्यक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जो अपने मन को अपने वश में करना चाहता है। इसीलिए तुम इसे अपने हित के लिए ध्यान से सुनो…

हे अर्जुन मानवी मन को 2 तरीके से अपने वश में कर सकते है, पहला तरीका है अभ्यास और दूसरा तरीका है वैराग्य। इन दोनों तरीको से ही तुम अपने मन को अपने वश में कर सकते हो। अब इन दोनों तरीको के बारे में तुम्हे अब विस्तार से बताता हु।

  • अभ्यास:

दोस्तों अभ्यास का अर्थ है निरंतर अभ्यास… यानि अपने मन को एक काम पर लगा दो, वह वहा से भागेगा, उसे फिर से पकड़कर लाओ, फिर वो वहा से फिर से भागेगा तो फिर उसे फिर से पकड़ो… और ऐसा बार बार करना पड़ता है, फिर कही जाकर यह हमारे वश में आ जाता है और इसे ही अभ्यास करना कहते है।

दोस्तों अभ्यास में आप भगवान के पवित्र नाम का उचारण भी कर सकते हो, जिसे में भी हर रोज करता हु। क्यूँकी भगवान के नाम जप से हमारा मन तारता है और हमारे मन में जो गंधे और विनाशकारी विचारकारी आते रहते है ना, वो नाम जप से धीरे धीरे आने कम हो जाते है और हमारा मन हमारे काबू में आ जाता है।

दोस्तों अब में आपको उस हरे कृष्ण महामंत्र के बारे में बताता हु, जिसे में हर रोज जपता रहता हु। दोस्तों यह मंत्र प्रमाणिक संप्रदाय यानि की गौड़ीय वैष्णव संप्रदाय से आया हुआ है, इसलिए में यह मंत्र आपको सजेस्ट कर रहा हु।

हरे कृष्ण महामंत्र:

हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे | हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे

दोस्तों अब आपके मन में यह सवाल जरुर आया होंगा जो सवाल अर्जुन के भी मन में आया था की अगर अभ्यास से ही हमारा मन हमारे वश में आ जाता है, तो फिर वैराग्य की क्या आवशकता है और आखिर यह वैराग्य क्या है? तो इसका जवाब देते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते है की …

  • वैराग्य:

हे अर्जुन, वैराग्य की आवश्यकता इसलिए है क्यूँकी एक बार हमारा मन जब ठीक रास्ते पर आ जाने के बाद हमारा मन फिर से उलटे रास्ते पर न चला जाये इसलिए वैराग्य की आवश्यकता है। क्यूँकी इन्द्रियों के विषय मानव के मन को सदा उलटे रास्ते पर आकर्षित करते रहते है। यानि की काम की तृष्णा, भोग विलास, मोह आदि इत्यादि चीजे मानवी मन को फिर से अपनी ओर खीच लेती है।

इसलिए हमारे मन को यह समझना बहुत जरुरी हैं की यह सारे विषय यानि की काम की तृष्णा, भोग विलास, मोह आदि इत्यादि यह सब चीजे मिथ्या और मोह का ब्रह्म है। जब हमारा मन इस सत्य को अच्छे से समझ लेगा तो उसे इन सभी विषयों से मोह नहीं रहेगा, बल्कि उसे उससे वैराग्य हो जायेगा और इसे ही वैराग्य कहते है।

दोस्तों अगर आप भी इन दोनों तरीको को अपने जीवन में अपना लेते हो, तो आप भी अर्जुन की तरह अपने मन को अपने वश में कर सकते हो। दोस्तों आज के इस गीता का ज्ञान आर्टिकल में सिफ इतना ही, दोस्तों यह आर्टिकल आपको कैसा लगा? यह हमें निचे दिए कमेंट बॉक्स में कमेंट करके जरुर बताइए। साथ ही इस पोस्ट को फेसबुक, व्हाट्सएप्प और टेलीग्राम पर अपने दोस्तों के साथ अवश्य share कीजियेगा।

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धन्यवाद हरे कृष्ण राधे राधे…

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